हरड़ / हरीतकी ( टर्मिनलिया चेबुला )
- भारत में हिन्दी वा संस्कृत भाषा में इसे हरड़, हर्रे, हेजरड़, हड़, हरर, हेजरड़, हैमवती, चेतकी, अभया, अव्यथा, श्रेयसी, शिवा, पूतना, हरीतकी, पथ्या, कायस्था और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- आयुर्वेद में अमृता, प्रणद, कायस्थ, विजया, मेध्य और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- उड़ीसा में करंथा, हरेधा और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- गुजरात में हरीतकी, हिमजा और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- तमिलनाडु में कडुक्कै, करक्काय, हरितकि, हिलिखा, ओरडो, अनिलेकई, दिव्या, पुटानम, करक्काई और और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- बंगाल में नर्रा, होरीतकी और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- पंजाब में हरीतकी, हर, हरितकि, हरड़, हड़, और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- मुंबई में हिरड और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- अरब देश में अस्फर, हलील, हलीलजा, हलील अह जर्दा, हेजरड़, ब्लैक मॉयरोबालान और विभिन्न नामों से जाना जाता है
- हरड़ निचले हिमालयी क्षेत्र में रावी तट से पूर्वी बंगाल-असम में पांच हजार फीट की ऊंचाई पर पाया जाने वाला पेड़ है।
- यह औसतन ऊंचाई 50-60 मीटर होती है और 80 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ सकता है और यह मध्यम आकार का, शाखाओं वाला पेड़ होता है।
- हरड़ के पेड़ की छाल गहरे भूरे रंग की होती है और पत्ते 6 से 20 सेंटीमीटर लंबे, डेढ़ इंच चौड़े, वासा के अक्षर के आकार के समान होते हैं।
- हरड़ के पेड़ के फूल छोटे, लंबे तनों में पीले-सफेद होते हैं और उनमें तेज गंध होती है। परागण कीड़ों द्वारा होता है जो गंध से आकर्षित होते हैं।
- हरड़ के पेड़ के फल अण्डाकार अथवा गोलाकार 2-3 इंच लंबे होते हैं फल के ऊपर पर पाँच रेखाएँ होती हैं कच्चे फल लाल रंग के व पके हुए अवस्था में पीले से नारंगी-भूरे रंग के होते और मुरझाए हुए भूरे रंग के होते हैं प्रत्येक फल में एक बीज होता है।
- हरड़ के पेड़ में नई शाखा अप्रैल-मई में आती है और उसके फल सर्दियों में जनवरी से अप्रैल तक पाए जाते हैं।
- हरड़ के पेड़ फल के बीज कठोर, पीले रंग के, बड़े आकार के कोणीय आकार के होते हैं।
- आयुर्वेद में हरड़ को बहुत ही उपयोगी औषधि बताया गया है क्योंकि इसमें अनेक प्रकार की बीमारियों से लड़ने की शक्ति पाई जाती है इसी कारण इसे औषधियों का राजा भी बोला जाता है।
- आयुर्वेद में हरड़ को अण्डकोषवृद्धि या हाइड्रोसील को कम करने के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि बताया गया है 5 ग्राम हरड़ को 50 मिली गोमूत्र व 50 मिली एरंड तेल में पकायें। जब सिर्फ तेल शेष रह जाय तो छानकर, गुनगुने गर्म जल के साथ सुबह शाम थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेने से बीमारी में बहुत फायदा देखा गया है।
- हरड़ को ज्वर या बुखार, प्रतिश्याय या जुकाम के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि बताया गया है इसका उचित मात्रा में सेवन करने से बहुत ही जल्दी ज्वर उतर जाता है।
- आयुर्वेद में हरड़ को मधुमेह रोगियों के रक्त शर्करा के स्तर को प्रबंधित करने में मददगार बताया गया है हरड़ औषधि का प्रयोग अपने दैनिक आहार में चिकित्सक के परामर्श अनुसार कर सकते हैं।
- हरड़ को आयुर्वेद में रक्तपित्त ( नाक-कान से खून बहने की बीमारी ) के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि बताया गया है इसका उचित मात्रा में सेवन करने से रक्तपित्त से राहत दिलाने में बहुत लाभप्रद साबित होता है।
- आयुर्वेद में हरड़ को व्रण या अल्सर, कुष्ठ रोग की परेशानी को कम करने के लिए बहुत ही उपयोगी औषधि बताया गया है इसका चिकित्सक की सलाह अनुसार सेवन करने से बहुत लाभ होता है।
- हरड़ औषधि का प्रयोग मूत्रकृच्छ्र या पेशाब संबंधी बीमारी व कामला या पीलिया में बहुत फायदेमंद बताया गया है।
- आयुर्वेद में हरड़ को अतिसार या दस्त की बीमारी से राहत दिलाने में बहुत लाभकारी बताया गया है।
- हरड़ के औषधीय गुणों के कारण इसका प्रयोग मोतियाबिंद या नेत्र विकार की बीमारी से राहत दिलाने में बहुत लाभकारी बताया गया है।
- हरड़ अपने औषधीय गुणों के लिए जानी जाने वाली आयुर्वेद की महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियों में से एक है आयुर्वेद में हरड़ को स्वास्थ्य लाभ जैसे:- कब्ज, सर्दी, बुखार, वजन घटाने के लिए, प्रतिरक्षा शक्ति के लिए, बालों के लिए प्रयोग में लाया जाता है । इसकी प्रभावशाली स्वास्थ्य लाभों की सराहना करें और इसका उपयोग अपने जीवन की बेहतरी के लिए करें।
- हरड़ के जीवाणुरोधी और एंटीफंगल गुणों के कारण मुंहासों, स्कैल्प इंफेक्शन की हर्बल औषधियां बनाने में प्रयोग किया जाता है।
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